भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के 15 महत्वपूर्ण केस कानून
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Indian Evidence Act, 1872) भारतीय न्यायिक प्रणाली की नींव है, जो न्यायालयों में साक्ष्य की स्वीकार्यता और प्रासंगिकता को निर्धारित करता है। इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों की व्याख्या और अनुप्रयोग पर समय-समय पर उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों ने महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं, जिन्होंने न्यायिक दृष्टिकोण को स्पष्ट किया है।
1. एम्प्रेस बनाम वीरसिंह (1897)
मुख्य बिंदु: इस केस में पहली बार परिस्थितिजन्य साक्ष्य (Circumstantial Evidence) के सिद्धांत को भारतीय न्याय व्यवस्था में स्पष्ट किया गया। न्यायालय ने कहा कि जब प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य उपलब्ध न हो, तो मजबूत परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर भी दोषसिद्धि हो सकती है।
2. पशु पटेल बनाम एम्पायर (1911)
मुख्य बिंदु: इस निर्णय में न्यायालय ने गवाहों की साख (Credibility of Witness) पर जोर दिया और कहा कि यदि किसी गवाह की गवाही में कुछ असंगतियां हैं, तो इसे संपूर्ण रूप से अस्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
3. पुलुकुरी कोट्टाया बनाम सम्राट (1947)
मुख्य बिंदु: इस फैसले में भारतीय न्यायालय ने धारा 27 के तहत स्वीकारोक्ति (Confession) की सीमाओं को निर्धारित किया और कहा कि केवल वही स्वीकारोक्ति स्वीकार्य होगी, जो किसी ठोस सबूत की ओर ले जाए।
4. हनुमंत बनाम राज्य (1952)
मुख्य बिंदु: न्यायालय ने परिस्थितिजन्य साक्ष्य के लिए "पूर्ण और ठोस श्रृंखला" (Complete Chain of Evidence) के सिद्धांत को दोहराया, जिससे कोई अन्य संभावित निष्कर्ष न निकाला जा सके।
5. हरिचरण कुरमी बनाम राज्य (1964)
मुख्य बिंदु: सुप्रीम कोर्ट ने धारा 30 के तहत सह-अभियुक्त द्वारा दिए गए बयानों की स्वीकार्यता को स्पष्ट किया और कहा कि इन बयानों को मुख्य सबूत के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
6. शारदा बनाम धर्मपाल (1978)
मुख्य बिंदु: इस मामले में, न्यायालय ने वैद्यकीय परीक्षण (Medical Examination) के कानूनी प्रभावों पर निर्णय दिया और कहा कि न्याय के हित में ऐसी परीक्षाएं बाध्यकारी हो सकती हैं।
7. नंद कुमार बनाम राज्य (1980)
मुख्य बिंदु: इस मामले में, न्यायालय ने कहा कि दस्तावेजी साक्ष्य को मौखिक साक्ष्य पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जब तक कि कोई मजबूत कारण न हो।
8. नवल किशोर बनाम राज्य (1983)
मुख्य बिंदु: न्यायालय ने मरणासन्न कथन (Dying Declaration) की वैधता और उसकी शुद्धता पर विचार करते हुए कहा कि यह गवाह के समान महत्व रखता है।
9. बछन सिंह बनाम पंजाब राज्य (1985)
मुख्य बिंदु: न्यायालय ने कहा कि साक्ष्य अधिनियम के तहत मृत्यु दंड देने के लिए अपरिहार्य परिस्थितिजन्य साक्ष्य की मजबूत श्रृंखला आवश्यक है।
10. मुरलीधर बनाम दिल्ली प्रशासन (1974)
मुख्य बिंदु: इस निर्णय में, न्यायालय ने गवाह की गवाही की विश्वसनीयता (Credibility of Witness) पर विचार किया और कहा कि यदि किसी गवाह की गवाही आंशिक रूप से असत्य है, तो संपूर्ण गवाही को खारिज नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि तथ्यों के आधार पर सत्य भाग को स्वीकार किया जाना चाहिए।
11. रवि कुमार बनाम राज्य (2010)
मुख्य बिंदु: इस निर्णय में, न्यायालय ने मरणासन्न कथन (Dying Declaration) की साक्ष्य मूल्य पर चर्चा की और कहा कि यदि मरणासन्न कथन स्पष्ट, संगत और विश्वसनीय है, तो उसके आधार पर अभियुक्त को दोषी ठहराया जा सकता है, भले ही कोई अन्य प्रत्यक्षदर्शी गवाह न हो।
12. अनवर पीवी बनाम पीके बशीर (2014)
मुख्य बिंदु: इस निर्णय में, न्यायालय ने इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य (Electronic Evidence) की स्वीकार्यता के लिए आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 65-बी का महत्व स्पष्ट किया। कोर्ट ने कहा कि कोई भी इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य तभी स्वीकार्य होगा जब उसे विधिवत प्रमाणित किया गया हो।
13. श्रीधर बनाम राज्य (2009)
मुख्य बिंदु: इस मामले में, न्यायालय ने स्वीकृति (Admission) और स्वीकारोक्ति (Confession) के बीच अंतर स्पष्ट किया और कहा कि अभियुक्त द्वारा दिया गया कोई भी बयान यदि स्वयं के विरुद्ध जाता है, तो वह साक्ष्य अधिनियम के तहत स्वीकार्य हो सकता है, बशर्ते कि वह किसी दबाव में न दिया गया हो।
14. रामचंद्र बनाम राज्य (2002)
मुख्य बिंदु:इस मामले में, न्यायालय ने परिस्थितिजन्य साक्ष्य (Circumstantial Evidence) के महत्व को दोहराया और कहा कि जब कोई प्रत्यक्षदर्शी गवाह उपलब्ध नहीं होता, तब परिस्थितिजन्य साक्ष्य की श्रृंखला इतनी मजबूत होनी चाहिए कि वह आरोपी को अपराध से स्पष्ट रूप से जोड़ सके और कोई अन्य संभावित निष्कर्ष न हो।
15. पलवई गोवर्धन रेड्डी बनाम भारत संघ (2021)
मुख्य बिंदु: इस निर्णय में, न्यायालय ने गुप्त गवाहों (Protected Witnesses) के अधिकारों और उनकी सुरक्षा के महत्व पर विचार किया। कोर्ट ने कहा कि यदि किसी गवाह को खतरा है, तो उसकी पहचान को छिपाना न्यायसंगत है, ताकि वह स्वतंत्र रूप से गवाही दे सके।
Reviewed by Dr. Ashish Shrivastava
on
February 15, 2025
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