Anwar P.V. vs. P.K. Basheer (2014): A landmark judgement in the admissibility of electronic evidence
अनवर पी.वी. बनाम पी.के. बशीर (2014): इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की स्वीकार्यता में एक महत्वपूर्ण निर्णय
परिचय
भारतीय न्यायिक प्रणाली में, अनवर पी.वी. बनाम पी.के. बशीर का मामला (2014) इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की स्वीकार्यता के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इस निर्णय ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 65बी के तहत इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की प्रमाणिकता और स्वीकार्यता के मानकों को स्पष्ट किया।
मामले की पृष्ठभूमि
2011 में केरल विधानसभा चुनावों के दौरान, अनवर पी.वी., एक स्वतंत्र उम्मीदवार, ने आरोप लगाया कि पी.के. बशीर और उनके समर्थकों ने उनके खिलाफ झूठी और मानहानिकारक जानकारी फैलाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का उपयोग किया। इसमें सीडी और अन्य इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड शामिल थे, जिन्हें अदालत में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया गया।
मुख्य कानूनी प्रश्न
मामले का मुख्य कानूनी प्रश्न यह था कि क्या बिना धारा 65बी(4) के तहत प्रमाणपत्र के, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65बी(4) के तहत प्रमाणपत्र के बिना, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि यह प्रावधान विशेष है और इसे अन्य सामान्य प्रावधानों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
निर्णय का प्रभाव
इस निर्णय ने न्यायिक प्रक्रियाओं में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की प्रमाणिकता सुनिश्चित करने के लिए एक सख्त मानक स्थापित किया। इससे यह सुनिश्चित होता है कि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य छेड़छाड़ से मुक्त और विश्वसनीय हों।
निष्कर्ष
अनवर पी.वी. बनाम पी.के. बशीर का मामला भारतीय न्यायिक प्रणाली में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की स्वीकार्यता के लिए एक महत्वपूर्ण दिशा-निर्देशक है। इसने न्यायालयों में प्रस्तुत किए जाने वाले इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों की प्रमाणिकता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक मानकों को स्पष्ट किया है।
Reviewed by Dr. Ashish Shrivastava
on
February 17, 2025
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