पुलुकुरी कोट्टाया बनाम सम्राट (1947) – विस्तृत विश्लेषण
मामला: Pulukuri Kottaya v. Emperor, AIR 1947 PC 67
अदालत: प्रिवी काउंसिल (Privy Council)
निर्णय की तिथि: 27 अक्टूबर 1947
न्यायाधीश: लॉर्ड पोर्टर (Lord Porter)
1. परिचय
यह मामला भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 27 के तहत दिए गए कथनों की स्वीकार्यता (admissibility) पर केंद्रित था। प्रिवी काउंसिल ने इस फैसले में यह स्पष्ट किया कि धारा 27 के तहत केवल वही भाग स्वीकार्य होगा जो आरोपी की निशानदेही पर बरामदगी से सीधा जुड़ा हो।
2. मामले के तथ्य (Facts of the Case)
- आंध्र प्रदेश (तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी) में पुलुकुरी कोट्टाया और अन्य सह-आरोपियों पर हत्या और डकैती का आरोप लगाया गया था।
- अभियोजन पक्ष के अनुसार, अभियुक्तों ने हत्या करने के बाद हथियारों को छिपा दिया था।
- पुलिस ने पूछताछ के दौरान पुलुकुरी कोट्टाया से एक बयान प्राप्त किया, जिसमें उसने कहा कि उसने एक खंजर (dagger) एक विशेष स्थान पर छिपाया है और वह उसे दिखा सकता है।
- पुलिस ने उसके बताए स्थान से हथियार बरामद किया।
3. साक्ष्य (Evidence Presented in Court)
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प्रत्यक्ष साक्ष्य (Direct Evidence)
- अभियोजन पक्ष ने गवाहों को पेश किया जिन्होंने हत्या की घटना के बारे में जानकारी दी।
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परिस्थितिजन्य साक्ष्य (Circumstantial Evidence)
- पुलिस को दिया गया आरोपी का बयान:
- "मैंने खंजर इस जगह पर छिपाया है और मैं इसे दिखा सकता हूँ।"
- पुलिस द्वारा आरोपी की निशानदेही पर बरामदगी।
- पुलिस को दिया गया आरोपी का बयान:
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अभियुक्त द्वारा दिया गया स्वीकारोक्ति बयान (Confessional Statement)
- आरोपी के बयान में दो भाग थे:
- पहला भाग: उसने हत्या की बात स्वीकारी।
- दूसरा भाग: उसने बताया कि हथियार कहाँ छिपा है।
- आरोपी के बयान में दो भाग थे:
4. मुख्य कानूनी मुद्दे (Legal Issues Involved)
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भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 27 की व्याख्या
- क्या पूरा बयान स्वीकार्य है या केवल उस भाग को ही स्वीकार किया जा सकता है जो वस्तु की बरामदगी से संबंधित हो?
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अपराध स्वीकार करने वाले कथनों की स्वीकार्यता
- क्या आरोपी द्वारा पुलिस को दिया गया पूरा बयान अदालत में सबूत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है?
5. प्रिवी काउंसिल का निर्णय (Judgment by Privy Council)
मुख्य निर्णय:
- प्रिवी काउंसिल ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 केवल उस हिस्से को स्वीकार्य बनाती है जो आरोपी के कथन के आधार पर किसी भौतिक वस्तु की बरामदगी से सीधे संबंधित हो।
- आरोपी द्वारा दिया गया पहला भाग (कि उसने हत्या की थी) स्वीकार्य नहीं होगा, क्योंकि यह धारा 25 और 26 के तहत निषिद्ध (inadmissible) है।
- लेकिन दूसरा भाग (कि उसने खंजर कहां छिपाया है) स्वीकार्य होगा, क्योंकि यह बरामदगी से जुड़ा है।
न्यायालय ने यह भी कहा:
- केवल वह भाग जो भौतिक खोज को स्पष्ट करता है, अदालत में स्वीकार्य होता है।
- पुलिस हिरासत में दिया गया कोई भी पूर्ण स्वीकारोक्ति बयान धारा 25 और 26 के तहत अस्वीकार्य होगा।
6. फैसले का प्रभाव (Impact of the Judgment)
- साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 की व्याख्या स्पष्ट हुई।
- केवल वही भाग स्वीकार्य होगा जो बरामदगी को दर्शाता हो।
- भविष्य के मामलों में पुलिस पूछताछ के दौरान दिए गए बयानों की सीमा तय हुई।
- पुलिस को अब यह सुनिश्चित करना होता है कि वे केवल कानूनी रूप से स्वीकार्य बयान ही अदालत में प्रस्तुत करें।
- भारतीय न्याय प्रणाली में स्वीकारोक्ति संबंधी मामलों में यह निर्णय मिसाल बन गया।
7. निष्कर्ष (Conclusion)
पुलुकुरी कोट्टाया बनाम सम्राट (1947) का मामला भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में मील का पत्थर साबित हुआ। इसने स्पष्ट किया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत केवल वही भाग स्वीकार्य होगा जो भौतिक साक्ष्य की बरामदगी से संबंधित हो। इस फैसले का व्यापक प्रभाव भारत में साक्ष्य अधिनियम की व्याख्या और पुलिस जांच की प्रक्रिया पर पड़ा, जिससे पुलिस द्वारा लिए गए बयानों के दुरुपयोग को रोकने में मदद मिली।
महत्वपूर्ण बिंदु संक्षेप में:
✔ धारा 27 के तहत केवल वही बयान स्वीकार्य होगा जो बरामदगी से संबंधित हो।
✔ स्वीकारोक्ति बयान यदि पुलिस हिरासत में दिया गया है, तो धारा 25 और 26 के तहत अस्वीकार्य होगा।
✔ यह निर्णय साक्ष्य अधिनियम की व्याख्या को स्पष्ट करने वाला एक ऐतिहासिक फैसला माना जाता है।
Reviewed by Dr. Ashish Shrivastava
on
February 15, 2025
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