अधिवक्ताओं के विशेषाधिकार प्राप्त संचार

 

अधिवक्ताओं के विशेषाधिकार प्राप्त संचार (Privileged Communications of Advocates) पर टिप्पणी



किसी भी न्यायिक प्रणाली में अधिवक्ता और उनके मुवक्किल (क्लाइंट) के बीच गोपनीयता बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। यह गोपनीयता न्याय के उचित प्रशासन और मुवक्किल के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक होती है। इसी संदर्भ में, विशेषाधिकार प्राप्त संचार (Privileged Communications) एक महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत है, जो अधिवक्ता और उनके मुवक्किल के बीच हुई बातचीत को गोपनीय बनाए रखता है और इसे अदालत में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करने से रोकता है। भारत में, यह सिद्धांत भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Indian Evidence Act, 1872) की धारा 126 से 129 के तहत संरक्षित है।


1. विशेषाधिकार प्राप्त संचार का अर्थ

विशेषाधिकार प्राप्त संचार का तात्पर्य अधिवक्ता (Lawyer/Advocate) और उनके मुवक्किल (Client) के बीच हुई गोपनीय बातचीत से है, जिसे मुवक्किल की सहमति के बिना किसी अन्य व्यक्ति के सामने प्रकट नहीं किया जा सकता। इसका मुख्य उद्देश्य मुवक्किल को अपने अधिवक्ता से पूर्ण पारदर्शिता के साथ बात करने का अवसर देना है, ताकि वह बिना किसी डर के अपनी बात अधिवक्ता को बता सके। यह गोपनीयता कानूनी पेशे में नैतिकता और विश्वास की नींव को मजबूत करती है।


2. भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के अंतर्गत प्रावधान

(i) धारा 126 – अधिवक्ता द्वारा गोपनीयता बनाए रखना अनिवार्य

धारा 126 के अनुसार, कोई भी अधिवक्ता, जो अपने मुवक्किल के साथ पेशेवर रूप से जुड़ा हुआ है, वह अपने मुवक्किल के साथ हुई बातचीत को, या उसके द्वारा प्राप्त जानकारी को, बिना मुवक्किल की अनुमति के अदालत में उजागर नहीं कर सकता।

अपवाद (Exceptions):
हालांकि, निम्नलिखित परिस्थितियों में अधिवक्ता विशेषाधिकार प्राप्त संचार को प्रकट कर सकता है—

  1. अगर मुवक्किल अधिवक्ता को स्वयं अनुमति दे – यदि मुवक्किल अपनी सहमति देता है, तो अधिवक्ता यह जानकारी साझा कर सकता है।
  2. अगर संचार अवैध उद्देश्य के लिए किया गया हो – यदि मुवक्किल अधिवक्ता से किसी अपराध को अंजाम देने के लिए सलाह मांगता है, तो वह संचार विशेषाधिकार प्राप्त नहीं रहेगा।
  3. यदि संचार से समाज के व्यापक हित की रक्षा होती हो – यदि संचार को गोपनीय बनाए रखना समाज के लिए घातक हो सकता है, तो इसे प्रकट किया जा सकता है।

(ii) धारा 127 – सहयोगी वकीलों के लिए गोपनीयता का नियम

धारा 127 यह स्पष्ट करती है कि अधिवक्ता के सहायक (जैसे – क्लर्क, स्टेनोग्राफर, सहायक अधिवक्ता, आदि) भी विशेषाधिकार प्राप्त संचार को गोपनीय रखने के लिए बाध्य होते हैं। यदि कोई अधिवक्ता अपने सहायक को कोई गोपनीय सूचना बताता है, तो सहायक भी इसे अदालत में उजागर नहीं कर सकता।


(iii) धारा 128 – मुवक्किल की सहमति से संचार प्रकट करना

इस धारा के तहत, यदि मुवक्किल स्वयं अपने अधिवक्ता को सूचना साझा करने की अनुमति देता है, तभी वह सूचना अदालत में प्रस्तुत की जा सकती है।


(iv) धारा 129 – मुवक्किल के गोपनीय संचार की सुरक्षा

धारा 129 यह स्पष्ट करती है कि कोई भी मुवक्किल, जो अपने अधिवक्ता से किसी कानूनी परामर्श के लिए संपर्क करता है, वह अपने संचार को गोपनीय बनाए रख सकता है और इसे अदालत में उजागर करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।


3. विशेषाधिकार प्राप्त संचार का उद्देश्य और महत्व

विशेषाधिकार प्राप्त संचार अधिवक्ता-मुवक्किल संबंध को मजबूत करता है और न्याय व्यवस्था में निम्नलिखित उद्देश्यों को पूरा करता है—

  1. मुवक्किल का अधिकार सुरक्षित रखना: इससे मुवक्किल को यह आश्वासन मिलता है कि उसकी दी गई जानकारी गोपनीय रहेगी, जिससे वह खुलकर अपने अधिवक्ता से परामर्श कर सकता है।
  2. न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता: यदि मुवक्किल और अधिवक्ता के बीच विश्वास बना रहेगा, तो वह अपने मामले की सही जानकारी दे सकेगा, जिससे न्यायिक प्रक्रिया प्रभावी होगी।
  3. कानूनी पेशे में नैतिकता बनाए रखना: यह सिद्धांत अधिवक्ता को नैतिक जिम्मेदारी प्रदान करता है कि वह अपने मुवक्किल के साथ प्राप्त जानकारी को अन्य किसी के समक्ष प्रकट न करे।
  4. रक्षा पक्ष को न्याय दिलाने में सहायता: यदि मुवक्किल स्वतंत्र रूप से अपने अधिवक्ता को पूरी जानकारी दे सकता है, तो अधिवक्ता उसके पक्ष को न्यायसंगत तरीके से अदालत में प्रस्तुत कर सकता है।

4. विशेषाधिकार प्राप्त संचार से जुड़े अपवाद

कुछ परिस्थितियों में, अधिवक्ता को विशेषाधिकार प्राप्त संचार को उजागर करना पड़ सकता है, जैसे—

  1. अगर अधिवक्ता को संदेह हो कि मुवक्किल गलत उद्देश्य से कानूनी परामर्श ले रहा है।
  2. अगर मुवक्किल अधिवक्ता को किसी अपराध में संलिप्त होने के लिए मजबूर कर रहा हो।
  3. अगर मुवक्किल की जानकारी सार्वजनिक हित को नुकसान पहुंचा सकती हो।

5. भारत में संबंधित न्यायिक निर्णय (Case Laws)

(i) पी. रक्षितैया बनाम राज्य (P. Radhakrishna Reddy v. State of Andhra Pradesh) – इस मामले में अदालत ने यह स्पष्ट किया कि यदि कोई मुवक्किल अपने अधिवक्ता से किसी अपराध को छिपाने की मंशा से संपर्क करता है, तो यह विशेषाधिकार प्राप्त संचार के अंतर्गत नहीं आएगा।

(ii) गुरुनाथ बनाम मारुति (Gurunath v. Maruti, 2019) – इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि अधिवक्ता द्वारा मुवक्किल की सूचना को उजागर करना तभी संभव है, जब मुवक्किल स्वयं इसकी अनुमति दे या जब संचार अवैध उद्देश्यों के लिए किया गया हो।


6. निष्कर्ष

विशेषाधिकार प्राप्त संचार अधिवक्ता-मुवक्किल संबंध का एक महत्वपूर्ण आधार स्तंभ है, जो न केवल मुवक्किल के अधिकारों की रक्षा करता है बल्कि न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता को भी सुनिश्चित करता है। यह गोपनीयता कानूनी पेशे में नैतिकता को बनाए रखती है और मुवक्किल को आत्मविश्वास देती है कि उसकी दी गई जानकारी सुरक्षित रहेगी। हालांकि, कुछ अपवादों के तहत यह गोपनीयता भंग की जा सकती है, लेकिन इसका दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

इसलिए, भारत में विशेषाधिकार प्राप्त संचार का महत्व न केवल कानूनी ढांचे के तहत सुरक्षित है, बल्कि यह न्यायिक व्यवस्था की कार्यक्षमता और मुवक्किल के अधिकारों की रक्षा के लिए भी आवश्यक है।

अधिवक्ताओं के विशेषाधिकार प्राप्त संचार अधिवक्ताओं के विशेषाधिकार प्राप्त संचार Reviewed by Dr. Ashish Shrivastava on March 12, 2025 Rating: 5

No comments:

Powered by Blogger.