स्वीकृति (Admissions) और स्वीकृतियां (Confessions) – विस्तृत अध्ययन
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 में स्वीकृति (Admissions) और स्वीकृतियां (Confessions) महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन दोनों का उपयोग न्यायिक प्रक्रिया में साक्ष्य के रूप में किया जाता है, लेकिन इनके बीच महत्वपूर्ण अंतर होते हैं। इस लेख में हम इन दोनों विषयों का विस्तृत अध्ययन करेंगे, जिसमें परिभाषा, उद्देश्य, कानूनी प्रावधान, प्रकार, न्यायिक दृष्टिकोण और उदाहरण शामिल होंगे।
1. स्वीकृति (Admissions) की परिभाषा
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 17 के अनुसार,
"कोई भी मौखिक, लिखित या आचरण द्वारा किया गया कथन, जो किसी व्यक्ति द्वारा उसके विरुद्ध जाता हो, स्वीकृति (Admission) कहलाता है।"
मुख्य तत्व:
✔ यह बयान मौखिक, लिखित या आचरण के रूप में हो सकता है।
✔ यह कथन स्वयं व्यक्ति के खिलाफ जाता हो।
✔ यह सिविल और आपराधिक मामलों में लागू होता है।
उदाहरण:
- यदि कोई व्यक्ति कहे, "मुझे स्वीकार है कि मैंने कर चोरी की है," तो यह एक स्वीकृति होगी।
- किसी संपत्ति विवाद में, यदि पक्षकार कहे, "यह जमीन पहले मेरे भाई के नाम थी," तो यह एक स्वीकृति होगी।
2. स्वीकृति (Admissions) का उद्देश्य
स्वीकृति का उद्देश्य न्यायालय को सच्चाई तक पहुँचाने में सहायता करना और मुकदमों को सरल बनाना है। इसके माध्यम से:
✔ अनावश्यक गवाहों की आवश्यकता कम होती है।
✔ अदालती कार्यवाही की अवधि कम होती है।
✔ पक्षकारों के बयान उनके खिलाफ साक्ष्य के रूप में प्रयोग किए जा सकते हैं।
3. स्वीकृति के प्रकार (Types of Admissions)
(i) औपचारिक स्वीकृति (Formal Admissions)
✔ ये न्यायालय में दिए जाते हैं और इनका उपयोग मुकदमे के दौरान किया जाता है।
✔ इनका उद्देश्य मुकदमे की कार्यवाही को सुगम बनाना होता है।
✔ उदाहरण: यदि कोई पक्षकार कहे कि "मुझे इस दस्तावेज़ की प्रमाणिकता पर कोई आपत्ति नहीं है," तो यह औपचारिक स्वीकृति होगी।
(ii) अनौपचारिक स्वीकृति (Informal Admissions)
✔ ये आमतौर पर अदालत के बाहर दिए जाते हैं।
✔ ये बातचीत, पत्राचार, या अन्य किसी प्रकार के बयान हो सकते हैं।
✔ उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति कहे कि "मुझे पता था कि वह संपत्ति मेरी नहीं थी," तो यह अनौपचारिक स्वीकृति होगी।
4. स्वीकृति की कानूनी वैधता
स्वीकृति को भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 18 से 23 में वर्णित किया गया है।
✔ यह केवल उस व्यक्ति के विरुद्ध साक्ष्य के रूप में प्रयोग हो सकती है, जिसने इसे दिया हो।
✔ यह अन्य साक्ष्यों के साथ मिलाकर देखी जाती है।
✔ इसे पूरी तरह से स्वीकार या अस्वीकार नहीं किया जा सकता, बल्कि इसके महत्व को अदालत तय करती है।
5. स्वीकृति (Admissions) बनाम स्वीकृतियां (Confessions)
स्वीकृति और स्वीकृतियों में महत्वपूर्ण अंतर होते हैं:
| आधार | स्वीकृति (Admissions) | स्वीकृति (Confessions) |
|---|---|---|
| परिभाषा | एक कथन जो इसे देने वाले व्यक्ति के विरुद्ध जाता है | एक कथन जो अपराध करने की बात स्वीकार करता है |
| लागू होने की सीमा | यह दीवानी और आपराधिक दोनों मामलों में लागू होता है | यह केवल आपराधिक मामलों में लागू होता है |
| कानूनी प्रभाव | यह प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है, बल्कि एक सहायक साक्ष्य है | यह अपराध का प्रत्यक्ष प्रमाण हो सकता है |
| स्वीकार्यता | यह न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है | यह केवल धारा 24-30 के अंतर्गत मान्य होता है |
| उदाहरण | "मेरी दुकान में चोरी हुई थी" | "मैंने दुकान में चोरी की थी" |
6. स्वीकृतियां (Confessions) की परिभाषा
भारतीय साक्ष्य अधिनियम में स्वीकृतियों की कोई विशेष परिभाषा नहीं दी गई है, लेकिन न्यायालय के अनुसार,
"कोई भी बयान जिसमें अभियुक्त अपने अपराध को स्वीकार करता है, उसे स्वीकृति (Confession) कहते हैं।"
महत्वपूर्ण तत्व:
✔ यह केवल आपराधिक मामलों में लागू होती है।
✔ यह अभियुक्त द्वारा दिया गया कथन होना चाहिए।
✔ इसमें अपराध की स्पष्ट स्वीकृति होनी चाहिए।
7. स्वीकृतियों (Confessions) के प्रकार
(i) न्यायिक स्वीकृतियां (Judicial Confessions)
✔ वे बयान जो आरोपी न्यायालय में देता है।
✔ इन्हें मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किया जाता है।
✔ ये प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में स्वीकार्य होते हैं।
उदाहरण:
कोई अभियुक्त अदालत में कहे, "मैंने पीड़ित की हत्या की," तो यह न्यायिक स्वीकृति होगी।
(ii) गैर-न्यायिक स्वीकृतियां (Extra-Judicial Confessions)
✔ वे बयान जो आरोपी पुलिस या किसी अन्य व्यक्ति के सामने देता है।
✔ ये अदालत में सीधे स्वीकार्य नहीं होते, जब तक कि अन्य साक्ष्यों से पुष्टि न हो।
उदाहरण:
कोई अभियुक्त अपने मित्र से कहे, "मैंने हत्या कर दी," तो यह गैर-न्यायिक स्वीकृति होगी।
8. स्वीकृतियों की स्वीकार्यता (Admissibility of Confessions)
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 24 से 30 के तहत स्वीकृतियों की स्वीकार्यता निर्धारित की जाती है।
(i) अस्वीकार्य स्वीकृतियां
✔ यदि पुलिस के समक्ष दी गई हो (धारा 25)
✔ यदि किसी प्रकार के प्रलोभन, बल, या धमकी के तहत दी गई हो (धारा 24)
✔ सह-अभियुक्त द्वारा दिए गए बयान (धारा 30)
(ii) स्वीकार्य स्वीकृतियां
✔ यदि मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए हों (धारा 164, दंड प्रक्रिया संहिता)
✔ यदि अभियुक्त बिना किसी दबाव के स्वीकार करे
9. न्यायिक दृष्टिकोण
✔ केशवनंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वीकृति साक्ष्य का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है लेकिन यह अकेले दोषसिद्धि का आधार नहीं बन सकती।
✔ ब्रह्म दत्त बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1956) – न्यायालय ने कहा कि स्वीकृति तभी स्वीकार्य होगी जब यह स्वतंत्र और स्वेच्छा से दी गई हो।
10. निष्कर्ष
✔ स्वीकृति और स्वीकृतियां न्यायिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
✔ स्वीकृतियां केवल आपराधिक मामलों में स्वीकार्य होती हैं, जबकि स्वीकृतियां सिविल और आपराधिक दोनों मामलों में लागू होती हैं।
✔ अदालत स्वीकृतियों की स्वीकार्यता को सावधानीपूर्वक जांचती है।
इन सिद्धांतों को समझकर कोई भी कानून का विद्यार्थी या वकील न्यायिक प्रक्रिया में मजबूत आधार बना सकता है।
Reviewed by Dr. Ashish Shrivastava
on
March 11, 2025
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