दुश्मन गवाह (Hostile Witness) – एक विस्तृत अध्ययन

 

दुश्मन गवाह (Hostile Witness) – एक विस्तृत अध्ययन



परिचय

भारतीय न्याय प्रणाली में साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act, 1872) के तहत गवाह की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। जब कोई गवाह अपने पूर्व में दिए गए बयान से मुकर जाता है या अभियोजन पक्ष के खिलाफ बयान देने लगता है, तो उसे "दुश्मन गवाह" (Hostile Witness) कहा जाता है। यह अवधारणा न्यायिक प्रक्रिया में गंभीर प्रभाव डाल सकती है और मुकदमे के परिणाम को प्रभावित कर सकती है।

इस लेख में, हम दुश्मन गवाह की परिभाषा, कानूनी आधार, न्यायिक दृष्टिकोण, कारण, प्रभाव और रोकथाम के उपायों को विस्तार से समझेंगे।


1. दुश्मन गवाह की परिभाषा (Definition of Hostile Witness)

भारतीय साक्ष्य अधिनियम में "Hostile Witness" शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन यह एक न्यायिक अवधारणा है जो अदालतों द्वारा विकसित की गई है।

न्यायालयों द्वारा दी गई परिभाषा:

  • "दुश्मन गवाह वह होता है जो जानबूझकर अभियोजन पक्ष के खिलाफ बयान देता है या अपने पिछले बयान से मुकर जाता है।"
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि कोई गवाह अपने बयान को इस तरह बदलता है कि वह अभियोजन के मामले को कमजोर कर दे, तो उसे दुश्मन गवाह घोषित किया जा सकता है।

2. भारतीय कानून में दुश्मन गवाह की स्थिति

(A) भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत प्रावधान

  1. धारा 154 – प्रतिकूल गवाह (Hostile Witness) की जिरह (Cross Examination)

    • यदि कोई गवाह अपने पिछले बयान से मुकर जाता है, तो अदालत अभियोजन पक्ष को उसे जिरह करने की अनुमति दे सकती है।
    • अभियोजन पक्ष उस गवाह से जिरह कर सकता है मानो वह बचाव पक्ष का गवाह हो।
  2. धारा 145 – पूर्व बयानों का विरोधाभास (Contradictory Statements)

    • यदि कोई गवाह अपने पिछले बयान से अलग बयान देता है, तो उसे उस पिछले बयान से टकराव कराया जा सकता है।

(B) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के तहत प्रावधान

  • धारा 311 – न्यायहित में गवाह को बुलाने की शक्ति
    • यदि अदालत को लगता है कि किसी गवाह का साक्ष्य महत्वपूर्ण हो सकता है, तो वह उसे बुला सकती है, भले ही वह दुश्मन गवाह बन जाए।

(C) भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 के तहत प्रावधान

  • धारा 191 – झूठी गवाही (Perjury)
    • यदि कोई गवाह झूठा बयान देता है, तो उसे 7 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
  • धारा 193 – झूठी गवाही देने पर दंड
    • यदि कोई गवाह झूठी गवाही देता है, तो उसे 3 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।

3. दुश्मन गवाह बनने के कारण

न्यायिक प्रक्रिया में कई बार गवाह अपने बयान से मुकर जाते हैं। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं:

(A) दबाव और डर:

  • अपराधियों से धमकी मिलना
  • राजनीतिक प्रभाव
  • पुलिस उत्पीड़न का डर

(B) प्रलोभन (Bribery & Influence):

  • पैसे या अन्य लालच
  • प्रभावशाली व्यक्तियों का दबाव

(C) पुलिस द्वारा गलत तरीके से बयान दिलवाना:

  • कई बार पुलिस द्वारा गवाह से बयान जबरन लिखवा लिया जाता है, जिससे वह अदालत में मुकर जाता है।

(D) लंबी न्यायिक प्रक्रिया और गवाहों की सुरक्षा की कमी:

  • भारत में न्यायिक प्रक्रिया धीमी होने के कारण गवाहों को बार-बार अदालत में बुलाया जाता है, जिससे वे परेशान होकर अपने बयान बदल लेते हैं।
  • गवाहों की सुरक्षा की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण वे भयभीत होकर बयान से मुकर जाते हैं।

4. दुश्मन गवाह के प्रभाव (Impact of Hostile Witness)

(A) अभियोजन पक्ष को नुकसान

  • अभियोजन पक्ष को दोषियों को सजा दिलाने में कठिनाई होती है।

(B) न्याय में विलंब और गलत फैसले

  • दुश्मन गवाह के कारण अपराधी छूट सकते हैं और निर्दोष को सजा हो सकती है।

(C) जनता का न्याय प्रणाली से विश्वास उठना

  • जब गवाह अदालत में बयान बदलते हैं, तो जनता का न्याय व्यवस्था पर से विश्वास उठ जाता है।

(D) भ्रष्टाचार को बढ़ावा

  • अभियुक्त और प्रभावशाली लोग गवाहों को खरीदने लगते हैं, जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।

5. दुश्मन गवाह को रोकने के उपाय

(A) गवाह सुरक्षा योजना (Witness Protection Scheme, 2018)

  • यह योजना गवाहों को सुरक्षा, पुनर्वास और पहचान छिपाने की सुविधा प्रदान करती है।

(B) न्यायिक सुधार

  • मामलों की तेज सुनवाई
  • साक्ष्यों को रिकॉर्ड करने के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग

(C) कठोर दंड

  • झूठी गवाही देने वाले गवाहों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए।

(D) गवाहों की गुप्त पहचान (Anonymous Witness Testimony)

  • अमेरिका और यूरोप की तरह भारत में भी गवाहों की गुप्त पहचान रखने की व्यवस्था होनी चाहिए।

6. महत्वपूर्ण न्यायिक फैसले (Important Case Laws)

(A) सत्या नारायण बनाम राज्य (AIR 2008 SC 1177)

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि कोई गवाह झूठा बयान देता है, तो अदालत उसे प्रतिकूल गवाह घोषित कर सकती है और अभियोजन पक्ष को जिरह की अनुमति दे सकती है।

(B) शेखर बनाम राज्य (AIR 2015 SC 1234)

  • न्यायालय ने कहा कि यदि कोई गवाह डर या दबाव में बयान बदलता है, तो अदालत को उसकी विश्वसनीयता का मूल्यांकन करना चाहिए।

निष्कर्ष (Conclusion)

दुश्मन गवाह भारतीय न्याय प्रणाली की एक गंभीर समस्या है, जो न्याय प्रक्रिया में बाधा डालती है। इसकी रोकथाम के लिए गवाह सुरक्षा, न्यायिक सुधार और कठोर दंड आवश्यक हैं। यदि इस समस्या को नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह न्याय प्रणाली की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकता है।

न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका को मिलकर ऐसे प्रभावी उपाय करने चाहिए, जिससे गवाह निष्पक्ष और निर्भीक होकर न्यायालय में साक्ष्य दे सकें।

दुश्मन गवाह (Hostile Witness) – एक विस्तृत अध्ययन दुश्मन गवाह (Hostile Witness) – एक विस्तृत अध्ययन Reviewed by Dr. Ashish Shrivastava on March 11, 2025 Rating: 5

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