चरित्र का साक्ष्य (Evidence of Character) – विस्तृत विश्लेषण
परिचय
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Indian Evidence Act, 1872) में "चरित्र का साक्ष्य" (Evidence of Character) एक महत्वपूर्ण विषय है। न्यायिक प्रक्रिया में किसी व्यक्ति के चरित्र को प्रमाण के रूप में प्रस्तुत करने की अनुमति सीमित होती है, क्योंकि यह अक्सर प्रत्यक्ष साक्ष्य (Direct Evidence) की तुलना में कम विश्वसनीय होता है। फिर भी, कुछ परिस्थितियों में, आरोपी, पीड़ित, या गवाह के चरित्र का साक्ष्य अदालत में प्रासंगिक हो सकता है।
इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि चरित्र साक्ष्य क्या है, इसके प्रकार, इसकी भारतीय साक्ष्य अधिनियम में प्रासंगिकता, और यह न्यायिक प्रणाली में किस प्रकार उपयोगी है।
1. चरित्र का साक्ष्य (Evidence of Character) क्या होता है?
"चरित्र" (Character) का तात्पर्य किसी व्यक्ति के नैतिक आचरण, प्रतिष्ठा, और व्यवहार से होता है। जब किसी व्यक्ति के आचरण और नैतिकता को न्यायालय में प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, तो उसे "चरित्र का साक्ष्य" कहा जाता है।
चरित्र साक्ष्य को प्रस्तुत करने का उद्देश्य
- यह स्थापित करना कि आरोपी या पीड़ित का सामान्य आचरण क्या है।
- यह दिखाना कि किसी व्यक्ति का पूर्व आचरण अपराध से संबंधित हो सकता है या नहीं।
- गवाह की विश्वसनीयता को साबित या चुनौती देना।
2. भारतीय साक्ष्य अधिनियम में चरित्र साक्ष्य की स्थिति
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 में चरित्र साक्ष्य को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। विशेष रूप से धारा 52 से 55 में इसके नियम बताए गए हैं:
(A) धारा 52 – सिविल मामलों में चरित्र का साक्ष्य
"सिविल मामलों में, किसी व्यक्ति के आचरण या नैतिक चरित्र को प्रमाण के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता, जब तक कि वह व्यक्ति का आचरण स्वयं विवादित न हो।"
स्पष्टीकरण:
- किसी व्यक्ति के अच्छे या बुरे चरित्र का साक्ष्य सिविल मामलों में अप्रासंगिक होता है।
- अपवाद: जब स्वयं व्यक्ति के चरित्र पर मामला आधारित हो, जैसे कि तलाक का मामला, मानहानि (Defamation) का केस आदि।
उदाहरण:
यदि किसी व्यक्ति पर संपत्ति विवाद चल रहा है, तो उसके नैतिक चरित्र का उल्लेख करना अप्रासंगिक होगा। लेकिन यदि मानहानि का मामला चल रहा है, तो उसका चरित्र प्रासंगिक हो सकता है।
(B) धारा 53 – आपराधिक मामलों में चरित्र का साक्ष्य (Character Evidence in Criminal Cases)
"यदि किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगाया गया है, तो वह अपने अच्छे चरित्र का प्रमाण प्रस्तुत कर सकता है।"
स्पष्टीकरण:
- आरोपी को यह अधिकार है कि वह अपने अच्छे चरित्र का साक्ष्य दे सकता है।
- अभियोजन पक्ष (Prosecution) केवल तभी आरोपी के बुरे चरित्र का साक्ष्य दे सकता है, जब आरोपी ने स्वयं अपने अच्छे चरित्र का प्रमाण प्रस्तुत किया हो।
उदाहरण:
यदि किसी व्यक्ति पर चोरी का आरोप है और वह अदालत में यह दिखाता है कि उसका चरित्र ईमानदार रहा है, तो अभियोजन पक्ष यह साबित कर सकता है कि वह पहले भी अपराध कर चुका है।
(C) धारा 54 – आरोपी के चरित्र का साक्ष्य (Bad Character of Accused)
"आरोपी का बुरा चरित्र केवल तब प्रासंगिक होता है जब उसका चरित्र स्वयं विवादित हो।"
स्पष्टीकरण:
- अभियोजन पक्ष केवल यह नहीं कह सकता कि आरोपी का चरित्र बुरा है, इसलिए उसने अपराध किया होगा।
- यदि आरोपी ने अपने अच्छे चरित्र का साक्ष्य दिया है, तो अभियोजन पक्ष उसके बुरे चरित्र का साक्ष्य दे सकता है।
- यदि आरोपी का पूर्व आचरण सीधे मामले से जुड़ा है (जैसे कि उसने पहले भी वही अपराध किया हो), तो यह प्रासंगिक हो सकता है।
उदाहरण:
यदि किसी व्यक्ति पर हत्या का आरोप है, तो अभियोजन पक्ष यह नहीं कह सकता कि "वह पहले से एक हिंसक व्यक्ति है, इसलिए उसने यह अपराध किया होगा।" लेकिन यदि आरोपी ने पहले भी इसी प्रकार के अपराध किए हैं, तो इसे प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
(D) धारा 55 – सिविल मामलों में चरित्र की प्रासंगिकता
"सिविल मामलों में किसी व्यक्ति का चरित्र प्रासंगिक होता है यदि इससे दावा या प्रतिदावा पर प्रभाव पड़ता हो।"
स्पष्टीकरण:
- जब किसी व्यक्ति के चरित्र से मामला प्रभावित होता है, तब उसका साक्ष्य दिया जा सकता है।
- यह मानहानि, तलाक, और पारिवारिक मामलों में महत्वपूर्ण होता है।
उदाहरण:
यदि किसी महिला ने तलाक का मुकदमा यह कहकर दायर किया है कि उसका पति अनैतिक है, तो पति के चरित्र का प्रमाण प्रस्तुत किया जा सकता है।
3. चरित्र साक्ष्य के प्रकार
चरित्र साक्ष्य को दो भागों में विभाजित किया जाता है:
(A) अच्छा चरित्र (Good Character)
- आरोपी द्वारा अपने बचाव में प्रस्तुत किया जाता है।
- यह दिखाने के लिए कि आरोपी का पूर्व आचरण ईमानदार और अपराध रहित रहा है।
- इसका उपयोग सजा को कम करवाने में किया जा सकता है।
उदाहरण:
यदि किसी व्यक्ति पर धोखाधड़ी का आरोप है, और वह यह साबित कर सकता है कि उसने पहले कभी किसी को धोखा नहीं दिया, तो यह अदालत के निर्णय को प्रभावित कर सकता है।
(B) बुरा चरित्र (Bad Character)
- अभियोजन पक्ष द्वारा तभी प्रस्तुत किया जा सकता है जब आरोपी ने अपने अच्छे चरित्र का दावा किया हो।
- यदि आरोपी का पिछला आचरण उस अपराध से मिलता-जुलता हो, तो इसे अदालत में प्रस्तुत किया जा सकता है।
उदाहरण:
यदि किसी व्यक्ति पर यौन अपराध का आरोप है और वह पहले भी इसी तरह के अपराध कर चुका है, तो अदालत में इसे प्रस्तुत किया जा सकता है।
4. न्यायिक दृष्टिकोण (Judicial Approach on Character Evidence)
- भारतीय न्यायालयों ने स्पष्ट किया है कि किसी व्यक्ति के चरित्र का साक्ष्य बहुत सावधानी से स्वीकार किया जाना चाहिए।
- केवल चारित्रिक साक्ष्य के आधार पर किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
- चरित्र साक्ष्य को केवल सहायक साक्ष्य (Corroborative Evidence) के रूप में स्वीकार किया जाता है।
निष्कर्ष
भारतीय साक्ष्य अधिनियम में चरित्र साक्ष्य को बहुत सीमित तरीके से स्वीकार किया गया है।
- सिविल मामलों में: केवल तब स्वीकार किया जाता है जब मामला व्यक्ति के चरित्र से सीधे संबंधित हो।
- आपराधिक मामलों में: आरोपी अपने अच्छे चरित्र का साक्ष्य प्रस्तुत कर सकता है, लेकिन अभियोजन पक्ष तब तक बुरा चरित्र प्रस्तुत नहीं कर सकता जब तक आरोपी ने पहले अच्छा चरित्र साबित करने का प्रयास न किया हो।
इसलिए, चरित्र साक्ष्य न्यायालय में एक महत्वपूर्ण लेकिन सीमित भूमिका निभाता है। न्यायालय इसे केवल एक पूरक प्रमाण के रूप में स्वीकार करता है और अन्य प्रत्यक्ष प्रमाणों के अभाव में इसे निर्णायक नहीं माना जाता।
Reviewed by Dr. Ashish Shrivastava
on
March 11, 2025
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