प्रासंगिकता और ग्राह्यता: एक व्यापक विश्लेषण

 

प्रासंगिकता और ग्राह्यता: एक व्यापक विश्लेषण



परिचय

प्रासंगिकता (Relevancy) और ग्राह्यता (Admissibility) साक्ष्य अधिनियम के मौलिक सिद्धांत हैं, जो यह निर्धारित करते हैं कि कौन से साक्ष्य अदालत में प्रस्तुत किए जा सकते हैं। हालाँकि ये शब्द अक्सर समानार्थी रूप में उपयोग किए जाते हैं, लेकिन इनका कानूनी अर्थ और प्रभाव भिन्न होते हैं। प्रासंगिकता किसी तथ्य और विवादास्पद मुद्दे के बीच तार्किक संबंध को दर्शाती है, जबकि ग्राह्यता उन कानूनी नियमों द्वारा शासित होती है जो यह तय करते हैं कि कोई प्रासंगिक साक्ष्य अदालत में स्वीकार्य है या नहीं।

यह लेख भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत इन अवधारणाओं का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है, उनके अंतरों की व्याख्या करता है और भारतीय न्यायपालिका में इनके अनुप्रयोग को समझाने के लिए महत्वपूर्ण न्यायिक व्याख्याएँ प्रदान करता है।


कानून में प्रासंगिकता की समझ

प्रासंगिकता की परिभाषा

प्रासंगिकता को भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 5 से 55 के तहत परिभाषित किया गया है। यह उन तथ्यों से संबंधित है जो किसी मुख्य विवादित तथ्य को प्रमाणित या खंडित करने में सहायता करते हैं। यदि कोई तथ्य तार्किक रूप से किसी मुद्दे से जुड़ा हुआ है और निर्णय लेने में सहायक है, तो उसे प्रासंगिक माना जाता है।

प्रासंगिकता के प्रकार

प्रासंगिकता को दो प्रमुख भागों में वर्गीकृत किया जाता है:

1. तार्किक प्रासंगिकता (Logical Relevancy)

यदि कोई तथ्य किसी मुद्दे के साथ एक तार्किक संबंध रखता है, तो वह तार्किक रूप से प्रासंगिक माना जाता है।
उदाहरण: यदि किसी हत्या के मामले में आरोपी ने उसी प्रकार का हथियार खरीदा था जो अपराध में प्रयुक्त हुआ, तो यह तथ्य तार्किक रूप से प्रासंगिक होगा। हालाँकि, केवल तार्किक प्रासंगिकता होने से वह साक्ष्य अदालत में ग्राह्य (admissible) नहीं हो जाता।

2. कानूनी प्रासंगिकता (Legal Relevancy)

कानूनी प्रासंगिकता उन तथ्यों को संदर्भित करती है जिन्हें कानून द्वारा स्वीकार्य (admissible) माना गया है।
महत्वपूर्ण तथ्य: प्रत्येक तार्किक रूप से प्रासंगिक तथ्य अदालत में ग्राह्य नहीं होता, जब तक कि वह भारतीय साक्ष्य अधिनियम के प्रावधानों का पालन न करे।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत प्रासंगिक तथ्य

भारतीय साक्ष्य अधिनियम में कई प्रकार के प्रासंगिक तथ्यों को परिभाषित किया गया है, जैसे:

  1. एक ही घटना का भाग होने वाले तथ्य (धारा 6 – रेस गेस्टे सिद्धांत)

    • घटना के समय होने वाली बातें और क्रियाएँ प्रासंगिक होती हैं।
    • उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति हत्या को देखकर तुरंत आरोपी का नाम चिल्लाए, तो यह प्रासंगिक होगा।
  2. कारण और प्रभाव से संबंधित तथ्य (धारा 7)

    • किसी तथ्य का कारण या उसका प्रभाव प्रासंगिक होता है।
    • उदाहरण: यदि आरोपी के कपड़ों पर खून के धब्बे मिले हों, तो यह प्रासंगिक तथ्य है।
  3. उद्देश्य, तैयारी और आचरण (धारा 8 और 9)

    • अपराध से पहले या बाद में व्यक्ति का आचरण प्रासंगिक होता है।
    • उदाहरण: यदि आरोपी का पीड़ित के प्रति बदले की भावना थी, तो यह महत्वपूर्ण तथ्य होगा।
  4. स्वीकारोक्ति और स्वीकारोक्तियाँ (धारा 17 से 31)

    • यदि कोई व्यक्ति अपने विरुद्ध कोई बात स्वीकार करता है, तो वह प्रासंगिक होती है।
  5. उन व्यक्तियों के बयान जो गवाह के रूप में उपस्थित नहीं हो सकते (धारा 32 – मृत्यु पूर्व कथन)

    • मरते समय दिया गया बयान प्रासंगिक होता है।
  6. विशेषज्ञों की राय (धारा 45 से 51)

    • फॉरेंसिक विशेषज्ञों, डॉक्टरों, हस्तलेख विश्लेषकों आदि की राय प्रासंगिक होती है।

कानून में ग्राह्यता की समझ

ग्राह्यता की परिभाषा

जहाँ प्रासंगिकता यह निर्धारित करती है कि कोई तथ्य तार्किक रूप से जुड़े हुए हैं या नहीं, वहीं ग्राह्यता यह निर्धारित करती है कि कोई साक्ष्य अदालत में प्रस्तुत किया जा सकता है या नहीं। यदि कोई साक्ष्य प्रासंगिक है, तो भी यह आवश्यक नहीं कि वह ग्राह्य हो।

ग्राह्यता निर्धारित करने वाले कारक

साक्ष्य की ग्राह्यता निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती है:

  1. सुनी-सुनाई बात (Hearsay Evidence) (धारा 60)

    • सुनी-सुनाई बात आमतौर पर ग्राह्य नहीं होती।
    • अपवाद: मृत्यु पूर्व कथन, विशेषज्ञ की राय, व्यावसायिक रिकॉर्ड।
  2. स्वीकारोक्ति (धारा 24-30)

    • जबरदस्ती या दबाव में की गई स्वीकारोक्ति ग्राह्य नहीं होती।
    • उदाहरण: पुलिस द्वारा प्रताड़ित करवाई गई स्वीकारोक्ति अदालत में ग्राह्य नहीं होगी।
  3. गैरकानूनी रूप से प्राप्त साक्ष्य

    • भारतीय न्यायालय एक लचीला दृष्टिकोण अपनाते हैं। यदि कोई साक्ष्य प्रासंगिक और विश्वसनीय है, तो उसे ग्राह्य माना जा सकता है।
    • उदाहरण: किसी व्यक्ति की फोन रिकॉर्डिंग बिना अनुमति के ली गई हो, फिर भी यदि वह प्रासंगिक है, तो उसे ग्राह्य माना जा सकता है।
  4. विशेषाधिकार प्राप्त संचार (धारा 122-132)

    • पति-पत्नी, वकील-मुवक्किल, सरकारी गोपनीय दस्तावेज़ आदि पर विशेषाधिकार प्राप्त होता है।
  5. सर्वोत्तम साक्ष्य नियम (Best Evidence Rule) (धारा 91-92)

    • प्राथमिक साक्ष्य (मूल दस्तावेज़) को द्वितीयक साक्ष्य (फोटोकॉपी) की तुलना में प्राथमिकता दी जाती है।

प्रासंगिकता और ग्राह्यता के बीच प्रमुख अंतर
पहलू प्रासंगिकता ग्राह्यता
परिभाषा किसी तथ्य का मुद्दे से तार्किक संबंध कानूनी रूप से स्वीकार्य साक्ष्य
व्यापकता व्यापक, तर्क और सामान्य ज्ञान पर आधारित संकीर्ण, कानूनी नियमों से संचालित
निर्धारित करने वाला तत्व भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 5-55 विशिष्ट कानूनी प्रावधान और न्यायिक विवेक
उदाहरण किसी गवाह ने आरोपी को घटनास्थल पर देखा यदि गवाह कानूनी रूप से सक्षम है, तो उसका बयान ग्राह्य होगा


निष्कर्ष

प्रासंगिकता और ग्राह्यता साक्ष्य अधिनियम के महत्वपूर्ण तत्व हैं, जो अदालत में प्रस्तुत किए जाने वाले साक्ष्यों की गुणवत्ता और विश्वसनीयता निर्धारित करते हैं। भारतीय न्यायालय समय के साथ ग्राह्यता के नियमों में लचीलापन और सख्ती दोनों को अपनाकर न्याय प्रणाली में निष्पक्षता सुनिश्चित करते हैं।

मुख्य बातें:

सभी ग्राह्य साक्ष्य प्रासंगिक होते हैं, लेकिन सभी प्रासंगिक साक्ष्य ग्राह्य नहीं होते।
प्रासंगिकता तर्क पर आधारित होती है, जबकि ग्राह्यता कानूनी प्रावधानों पर निर्भर करती है।
न्यायिक निर्णय ग्राह्यता के नियमों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रासंगिकता और ग्राह्यता: एक व्यापक विश्लेषण प्रासंगिकता और ग्राह्यता: एक व्यापक विश्लेषण Reviewed by Dr. Ashish Shrivastava on March 11, 2025 Rating: 5

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