“Hearsay Evidence is No Evidence” – विस्तार से समझाइए अपवादों सहित

 

“Hearsay Evidence is No Evidence” – विस्तार से समझाइए अपवादों सहित




भूमिका (Introduction)

भारतीय न्याय प्रणाली में साक्ष्य (Evidence) का महत्वपूर्ण स्थान है। अदालत में दिए गए साक्ष्य ही किसी मामले की सच्चाई को उजागर करने में मदद करते हैं। लेकिन सभी प्रकार के साक्ष्य न्यायालय में स्वीकार्य नहीं होते। उनमें से एक सुनी-सुनाई गवाही (Hearsay Evidence) होती है, जिसे आमतौर पर न्यायालय में मान्यता नहीं दी जाती।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत, न्यायालय में केवल प्रत्यक्ष साक्ष्य (Direct Evidence) को ही प्राथमिकता दी जाती है। धारा 60 में यह स्पष्ट किया गया है कि गवाह को वही बातें बतानी चाहिए जो उसने स्वयं देखी, सुनी या अनुभव की हों। यदि कोई गवाह ऐसी जानकारी देता है, जो उसने स्वयं नहीं देखी बल्कि किसी और से सुनी है, तो उसे "Hearsay Evidence" माना जाता है और इसे आमतौर पर अस्वीकार कर दिया जाता है।

1️⃣ सुनी-सुनाई गवाही (Hearsay Evidence) क्या होती है?

परिभाषा:
"जब कोई व्यक्ति अदालत में अपने बयान के दौरान किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा कही गई बात को गवाही के रूप में प्रस्तुत करता है, जिसे उसने स्वयं अनुभव नहीं किया है, तो इसे सुनी-सुनाई गवाही (Hearsay Evidence) कहा जाता है।"

उदाहरण:

  • राम ने श्याम को कहते सुना कि उसने मोहन को हत्या करते देखा। अगर अदालत में राम यह बयान देता है कि "श्याम ने मुझसे कहा था कि उसने मोहन को हत्या करते देखा", तो यह सुनी-सुनाई गवाही होगी।
  • सीसीटीवी फुटेज देखने वाले व्यक्ति का बयान – यदि कोई गवाह कोर्ट में यह कहे कि "किसी अन्य व्यक्ति ने सीसीटीवी फुटेज में आरोपी को देखा", तो यह भी Hearsay Evidence होगी।

2️⃣ सुनी-सुनाई गवाही अस्वीकार्य क्यों होती है? (Why is Hearsay Evidence Inadmissible?)

न्यायालय में सुनी-सुनाई गवाही को अमान्य मानने के कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:

1. गवाह की विश्वसनीयता पर प्रश्न (Lack of Reliability)

गवाह ने खुद उस घटना को नहीं देखा होता, इसलिए उसकी गवाही की सटीकता और प्रमाणिकता संदेहास्पद होती है।

2. जिरह (Cross-Examination) की संभावना नहीं होती

किसी व्यक्ति द्वारा कही गई बात को जब किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से पेश किया जाता है, तो उसका अदालत में प्रत्यक्ष जिरह (Cross Examination) नहीं किया जा सकता।

3. सूचना का गलत रूप से प्रस्तुत होना (Possibility of Misinterpretation)

सूचना एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचते-पहुंचते गलत भी हो सकती है।

4. प्रामाणिकता (Authenticity) का अभाव

यह साबित करना कठिन हो जाता है कि वास्तव में वह कथन दिया गया था या नहीं।


3️⃣ सुनी-सुनाई गवाही के अपवाद (Exceptions to the Hearsay Rule)

हालांकि, कुछ परिस्थितियों में सुनी-सुनाई गवाही को भी न्यायालय में स्वीकार किया जाता है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 में इसके लिए कुछ अपवाद दिए गए हैं:

1. मृत्यु पूर्व कथन (Dying Declaration) – धारा 32(1)

यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु से पहले दिया गया बयान किसी अपराध की सच्चाई जानने के लिए आवश्यक हो, तो उसे स्वीकार किया जाता है।
उदाहरण: हत्या के शिकार व्यक्ति ने मरने से पहले कहा – "मुझे अमर ने गोली मारी थी।"

2. स्वीकारोक्ति (Admission) – धारा 17-23

किसी अभियुक्त द्वारा अपनी गलती स्वीकार करना भी सुनी-सुनाई गवाही के नियम से मुक्त होता है।
उदाहरण: आरोपी पुलिस के सामने कहे – "मैंने चोरी की थी।"

3. गवाह की अनुपलब्धता (Statement of a Deceased or Unavailable Witness) – धारा 33

अगर कोई गवाह अदालत में उपस्थित नहीं हो सकता (जैसे मृत्यु हो गई हो), तो उसके पहले दिए गए बयान को अदालत में साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।

4. व्यापारिक और सार्वजनिक रिकॉर्ड (Business and Public Records) – धारा 74-75

सरकारी दस्तावेज़, कंपनी रिकॉर्ड, FIR, जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र आदि को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाता है।

5. इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य (Electronic Evidence) – आईटी अधिनियम, 2000

ईमेल, फोन रिकॉर्डिंग, CCTV फुटेज आदि को भी अब साक्ष्य के रूप में माना जाता है, बशर्ते उसकी प्रमाणिकता साबित हो।


4️⃣ प्रमुख भारतीय न्यायिक निर्णय (Landmark Indian Judgments on Hearsay Evidence)

📌 Kalyan Kumar Gogoi v. Ashutosh Agnihotri (2011)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुनी-सुनाई गवाही का कोई मूल्य नहीं है, जब तक कि वह किसी अपवाद के तहत न आती हो।

📌 State of UP v. Raj Narain (1975)

इस केस में कहा गया कि अदालत में केवल प्रत्यक्ष साक्ष्य को ही सर्वोच्च महत्व दिया जाना चाहिए।

📌 Pakala Narayan Swami v. Emperor (1939)

इस केस में मृत्यु पूर्व कथन को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया गया, क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण अपवाद था।

📌 Ram Bihari Yadav v. State of Bihar (1998)

इस केस में न्यायालय ने कहा कि अगर कोई गवाह प्रत्यक्ष रूप से किसी तथ्य की पुष्टि नहीं कर सकता, तो उसकी गवाही को स्वीकार नहीं किया जाएगा।


5️⃣ अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण (International Perspective on Hearsay Evidence)
देश सुनी-सुनाई गवाही की मान्यता
अमेरिका अधिकांश मामलों में अस्वीकार्य, लेकिन कुछ अपवादों में मान्य।
ब्रिटेन अधिकांश मामलों में अस्वीकार्य, लेकिन व्यावसायिक रिकॉर्ड और सरकारी दस्तावेज़ स्वीकार्य।
भारत केवल अपवादों के तहत स्वीकार्य।


6️⃣ निष्कर्ष (Conclusion)

"Hearsay Evidence is No Evidence" – यह कथन भारतीय न्यायिक प्रणाली में पूर्ण रूप से लागू होता है। किसी भी मामले में न्यायाधीश उन्हीं साक्ष्यों पर विचार करते हैं, जो प्रत्यक्ष होते हैं और जिन पर जिरह संभव हो। हालांकि, कुछ अपवादों जैसे मृत्यु पूर्व कथन, स्वीकृति, व्यापारिक रिकॉर्ड आदि को मान्यता प्राप्त है।


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“Hearsay Evidence is No Evidence” – विस्तार से समझाइए अपवादों सहित “Hearsay Evidence is No Evidence” – विस्तार से समझाइए अपवादों सहित Reviewed by Dr. Ashish Shrivastava on February 27, 2025 Rating: 5

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