गवाह की स्मृति को ताज़ा करने से संबंधित प्रावधानों की विस्तृत व्याख्या
🔍 परिचय
न्यायिक प्रक्रियाओं में गवाह की गवाही अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। कई बार गवाह को किसी घटना का सही विवरण याद नहीं रहता या वह भूल जाता है। ऐसे मामलों में, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 159 और 160 गवाह को अपनी स्मृति ताज़ा करने (Refreshing Memory) की अनुमति देती हैं। इस लेख में, हम इन प्रावधानों की विस्तार से चर्चा करेंगे और यह समझेंगे कि गवाह किन परिस्थितियों में अपनी स्मृति ताज़ा कर सकता है।
📌 गवाह की स्मृति ताज़ा करने का कानूनी आधार
गवाह की स्मृति को ताज़ा करने से संबंधित नियम भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की निम्नलिखित धाराओं में निहित हैं:
🔹 धारा 159: गवाह द्वारा दस्तावेज़ का संदर्भ लेना
इस धारा के तहत, यदि गवाह किसी घटना या तथ्य को स्पष्ट रूप से याद नहीं कर पाता, तो उसे अपनी गवाही देने से पहले या गवाही के दौरान किसी दस्तावेज़ का संदर्भ लेने की अनुमति होती है।
👉 मुख्य बिंदु:
- गवाह को उसकी गवाही के दौरान या उससे पहले कोई नोट्स या रिकॉर्ड देख लेने की अनुमति होती है।
- दस्तावेज़ को इस शर्त पर देखा जा सकता है कि गवाह ने इसे स्वयं लिखा हो या उसकी देखरेख में लिखा गया हो।
- यदि गवाह ने कोई रिपोर्ट, नोट्स या अन्य रिकॉर्ड घटना के तुरंत बाद तैयार किया था, तो उसे स्मृति ताज़ा करने के लिए उपयोग कर सकता है।
🎯 उदाहरण:
- एक पुलिस अधिकारी, जिसने किसी अपराध स्थल का निरीक्षण करने के बाद रिपोर्ट बनाई थी, वह कोर्ट में गवाही देने से पहले उस रिपोर्ट को देख सकता है।
- एक डॉक्टर, जिसने किसी घायल व्यक्ति का इलाज किया था, वह अपने मेडिकल रिकॉर्ड देखकर गवाही दे सकता है।
🔹 धारा 160: न्यायालय द्वारा दस्तावेज़ का निरीक्षण
इस धारा के अनुसार, यदि गवाह किसी दस्तावेज़ की सहायता से अपनी स्मृति ताज़ा कर रहा है, तो न्यायालय यह जांच कर सकता है कि वह दस्तावेज़ विश्वसनीय है या नहीं।
👉 मुख्य बिंदु:
- यदि गवाह किसी दस्तावेज़ का उपयोग कर रहा है, तो वह दस्तावेज़ अदालत के सामने पेश किया जा सकता है।
- प्रतिपक्ष (Opposing Party) को भी यह दस्तावेज़ देखने और उस पर सवाल उठाने का अधिकार होता है।
- न्यायालय स्वयं यह तय कर सकता है कि दस्तावेज़ को गवाही के समर्थन में स्वीकार किया जाए या नहीं।
🎯 उदाहरण:
- यदि एक बैंक अधिकारी ने किसी खाते के लेन-देन से संबंधित विवरण अपनी नोटबुक में लिखा था, तो अदालत उसे देखने की अनुमति दे सकती है।
- किसी पत्रकार द्वारा लिखी गई रिपोर्ट, यदि सटीक और विश्वसनीय है, तो अदालत उसे स्वीकार कर सकती है।
📜 गवाह की स्मृति ताज़ा करने की प्रक्रिया
गवाह की स्मृति ताज़ा करने की प्रक्रिया तीन चरणों में होती है:
1️⃣ गवाह को नोट्स या रिकॉर्ड देखने की अनुमति देना
- गवाह को यह अनुमति तभी दी जाती है जब वह यह साबित कर सके कि उसने वह दस्तावेज़ स्वयं लिखा था या उसकी देखरेख में तैयार हुआ था।
- यदि दस्तावेज़ न्यायालय को संदेहास्पद लगता है, तो इसे अस्वीकार किया जा सकता है।
2️⃣ दस्तावेज़ की विश्वसनीयता की जांच
- न्यायालय और प्रतिपक्ष को यह जांचने का अधिकार होता है कि दस्तावेज़ प्रामाणिक है या नहीं।
- यदि दस्तावेज़ सही पाया जाता है, तो गवाह अपनी गवाही में इसका उपयोग कर सकता है।
3️⃣ गवाही के दौरान दस्तावेज़ से संदर्भ लेना
- गवाह को अपनी स्मृति ताज़ा करने के लिए दस्तावेज़ से पढ़ने की अनुमति होती है, लेकिन उसे अपनी गवाही मौखिक रूप से देनी होती है।
- केवल उन्हीं तथ्यों को गवाही में शामिल किया जा सकता है, जो दस्तावेज़ में लिखे गए थे और जिन्हें गवाह पहले से जानता था।
⚖️ भारतीय न्यायपालिका में स्मृति ताज़ा करने के सिद्धांत का महत्व
भारतीय न्यायिक प्रणाली में यह प्रावधान बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि:
✔ गलत गवाही को रोकता है: गवाह गलत तथ्य न बताए, इसके लिए यह आवश्यक होता है कि उसे पूर्व में दर्ज किए गए दस्तावेज़ों को देखने की अनुमति दी जाए।
✔ स्मृति की सटीकता बढ़ाता है: लंबी अवधि के बाद गवाही देते समय गवाह की याददाश्त धुंधली हो सकती है, इसलिए स्मृति ताज़ा करने से तथ्य अधिक स्पष्ट हो जाते हैं।
✔ निष्पक्ष न्याय को बढ़ावा देता है: न्यायालय को सही निर्णय लेने में मदद मिलती है, क्योंकि गवाह अपने पिछले रिकॉर्ड को देखकर सटीक गवाही दे सकता है।
🚀 प्रमुख अदालती निर्णय (Case Laws) जो स्मृति ताज़ा करने से जुड़े हैं
📌 R. v. Richardson (1961)
इस मामले में न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि गवाह ने कोई नोट्स पहले ही बना लिए थे और वे विश्वसनीय हैं, तो वह अपनी गवाही में उनका संदर्भ ले सकता है।
📌 केस: राम प्रसाद बनाम भारत संघ
इस मामले में अदालत ने कहा कि "गवाह की स्मृति ताज़ा करने का अधिकार निष्पक्ष सुनवाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है
Reviewed by Dr. Ashish Shrivastava
on
February 27, 2025
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