प्राथमिक और द्वितीयक साक्ष्य में अंतर: भारतीय साक्ष्य अधिनियम के संदर्भ में

 

प्राथमिक और द्वितीयक साक्ष्य में अंतर: भारतीय साक्ष्य अधिनियम के संदर्भ में(Difference between primary and secondary evidence: in the context of the Indian Evidence Act)



📌 प्रस्तावना (Introduction)

न्यायालय में किसी तथ्य को प्रमाणित करने के लिए साक्ष्य (Evidence) की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Indian Evidence Act, 1872) साक्ष्य के प्रकार और उनकी स्वीकार्यता को निर्धारित करता है। इसमें साक्ष्य को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया गया है— प्राथमिक साक्ष्य (Primary Evidence) और द्वितीयक साक्ष्य (Secondary Evidence)।

इस लेख में हम इन दोनों प्रकार के साक्ष्यों के बीच विस्तृत अंतर को समझेंगे और यह भी जानेंगे कि किन परिस्थितियों में द्वितीयक साक्ष्य को मान्य किया जाता है।


📖 प्राथमिक साक्ष्य (Primary Evidence) क्या होता है?

🔹 परिभाषा (Definition)

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 62 के अनुसार:
"कोई भी साक्ष्य जो किसी दस्तावेज या अन्य सामग्री के मूल स्वरूप को प्रमाणित करता है, उसे प्राथमिक साक्ष्य कहा जाता है।"

प्राथमिक साक्ष्य के महत्वपूर्ण बिंदु

  1. मूल दस्तावेज (Original Document): किसी भी दस्तावेज का मूल रूप न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता है।
  2. प्रत्यक्ष प्रमाण (Direct Evidence): यह सबसे मजबूत और प्रत्यक्ष प्रमाण होता है।
  3. प्रतिलिपि (Copy) को स्वीकार नहीं किया जाता: जब तक कि विशेष परिस्थितियों में आवश्यक न हो।
  4. भरोसेमंद (Reliable): यह अधिक विश्वसनीय माना जाता है क्योंकि इसमें हेरफेर की संभावना कम होती है।

🏛 उदाहरण (Examples)

भूमि का मूल कागज: यदि किसी जमीन का स्वामित्व सिद्ध करने के लिए मूल दस्तावेज (Registry) न्यायालय में प्रस्तुत किया जाए, तो वह प्राथमिक साक्ष्य होगा।
ऑरिजनल अनुबंध पत्र: किसी अनुबंध से संबंधित विवाद में मूल हस्ताक्षरित कॉन्ट्रैक्ट को प्रस्तुत किया जाए, तो यह प्राथमिक साक्ष्य होगा।


📖 द्वितीयक साक्ष्य (Secondary Evidence) क्या होता है?

🔹 परिभाषा (Definition)

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 63 के अनुसार:
"वह साक्ष्य जो किसी मूल दस्तावेज़ का प्रमाणिक पुनरुत्पादन होता है, उसे द्वितीयक साक्ष्य कहा जाता है।"

द्वितीयक साक्ष्य के महत्वपूर्ण बिंदु

  1. प्रतिलिपि (Copy) को स्वीकार किया जाता है: जैसे फ़ोटोस्टेट, प्रमाणित प्रतिलिपि, या अन्य पुनरुत्पादित दस्तावेज।
  2. दस्तावेज़ों की मौखिक व्याख्या: किसी व्यक्ति द्वारा मूल दस्तावेज़ के बारे में दिया गया मौखिक विवरण।
  3. अन्य प्रासंगिक प्रमाण: माइक्रोफ़िल्म, डिजिटल रिकॉर्ड, टेलीग्राम, और अन्य इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य।
  4. विशेष परिस्थितियों में स्वीकृति: द्वितीयक साक्ष्य को तभी स्वीकार किया जाता है जब मूल साक्ष्य अनुपलब्ध हो।

🏛 उदाहरण (Examples)

फोटोस्टेट या स्कैन कॉपी: यदि किसी दस्तावेज़ की मूल प्रति उपलब्ध नहीं है, तो उसकी प्रमाणित फोटोस्टेट कॉपी प्रस्तुत की जा सकती है।
गवाह द्वारा मौखिक गवाही: यदि किसी अनुबंध का मूल दस्तावेज़ गुम हो गया है, तो उस अनुबंध को देखने वाले व्यक्ति की मौखिक गवाही द्वितीयक साक्ष्य के रूप में दी जा सकती है।


📌 प्राथमिक और द्वितीयक साक्ष्य में अंतर

प्राथमिक और द्वितीयक साक्ष्य में अंतर

बिंदु प्राथमिक साक्ष्य द्वितीयक साक्ष्य
परिभाषा मूल दस्तावेज़ या प्रत्यक्ष प्रमाण जिसे न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता है। मूल दस्तावेज़ की अनुपस्थिति में उसकी प्रमाणिक प्रतिलिपि या अन्य रूप।
स्वीकृति का स्तर सबसे अधिक विश्वसनीय और स्वीकार्य। केवल विशेष परिस्थितियों में स्वीकार किया जाता है।
उदाहरण मूल अनुबंध पत्र, भूमि का मूल कागज़, ऑरिजनल ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग। फोटोस्टेट कॉपी, मौखिक गवाही, डिजिटल रिकॉर्ड।
कब स्वीकार्य? हमेशा स्वीकार्य जब उपलब्ध हो। मूल दस्तावेज़ गुम हो जाए, नष्ट हो जाए या अन्य विशेष परिस्थितियों में।


📖 किन परिस्थितियों में द्वितीयक साक्ष्य को स्वीकार किया जाता है?

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65 में कुछ विशेष परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है, जब द्वितीयक साक्ष्य को स्वीकार किया जा सकता है:

1️⃣ मूल दस्तावेज नष्ट हो गया हो (When the original document is lost or destroyed)

✅ यदि किसी दस्तावेज़ का मूल स्वरूप खो गया है या नष्ट हो गया है, और इसे पुनः प्राप्त करना असंभव है, तो उसकी प्रतिलिपि को न्यायालय में प्रस्तुत किया जा सकता है।
उदाहरण: कोई अनुबंध आग में जल गया हो, तो उसकी फोटोस्टेट कॉपी प्रस्तुत की जा सकती है।

2️⃣ मूल दस्तावेज न्यायालय की हिरासत में हो (When the original is in Court’s custody)

✅ यदि दस्तावेज़ न्यायालय की हिरासत में है और इसे कोर्ट से बाहर नहीं लाया जा सकता, तो उसकी प्रमाणित प्रतिलिपि पेश की जा सकती है।

3️⃣ मूल दस्तावेज़ विरोधी पक्ष के पास हो और वह इसे प्रस्तुत न करे

✅ यदि कोई महत्वपूर्ण दस्तावेज़ विपक्षी पक्ष के पास हो और वह इसे जानबूझकर प्रस्तुत न करे, तो द्वितीयक साक्ष्य मान्य हो सकता है।
उदाहरण: किसी किरायेदारी विवाद में यदि मकान मालिक किराए की रसीद नहीं दिखाता, तो किरायेदार की प्रतिलिपि प्रस्तुत की जा सकती है।

4️⃣ जब दस्तावेज सामान्यत: प्रतिलिपि के रूप में ही रहता हो (When the document is commonly in a copied form)

✅ कुछ सरकारी दस्तावेज या रिकॉर्ड केवल प्रमाणित प्रतिलिपि के रूप में ही उपलब्ध होते हैं, जैसे:
📜 भूमि का रजिस्टर रिकॉर्ड
📜 न्यायालय के फैसलों की प्रमाणित प्रतिलिपि

5️⃣ इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य और डिजिटल रिकॉर्ड

✅ भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य भी द्वितीयक साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य हैं।
उदाहरण: ईमेल, व्हाट्सएप चैट, सीसीटीवी फुटेज, बैंक के ऑनलाइन रिकॉर्ड आदि।


🏛 भारतीय न्यायालयों के महत्वपूर्ण फैसले (Landmark Judgments)

  1. मुरारिलाल बनाम राज्य (1962 AIR 1189) – इस फैसले में कहा गया कि यदि किसी दस्तावेज की मूल प्रति उपलब्ध नहीं है, तो उसकी प्रमाणित फोटोस्टेट कॉपी साक्ष्य के रूप में दी जा सकती है।
  2. अनवर पी.वी. बनाम पी.के. बशीर (2014 SC 179) – इसमें स्पष्ट किया गया कि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत द्वितीयक साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।

🔗 निष्कर्ष (Conclusion)

प्राथमिक साक्ष्य सबसे प्रामाणिक और स्वीकार्य साक्ष्य होता है, जबकि द्वितीयक साक्ष्य केवल तब स्वीकार्य होता है जब मूल साक्ष्य उपलब्ध न हो। भारतीय साक्ष्य अधिनियम की विभिन्न धाराएं यह सुनिश्चित करती हैं कि किसी भी स्थिति में न्यायालय को उचित साक्ष्य प्राप्त हो।

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प्राथमिक और द्वितीयक साक्ष्य में अंतर: भारतीय साक्ष्य अधिनियम के संदर्भ में प्राथमिक और द्वितीयक साक्ष्य में अंतर: भारतीय साक्ष्य अधिनियम के संदर्भ में Reviewed by Dr. Ashish Shrivastava on February 27, 2025 Rating: 5

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